Uttarakhand News: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में मजदूरों को 16वें दिन भी बचाने का काम जारी है। सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सरकारें लगातार प्रयासरत हैं, और इसके लिए विभिन्न उपायों का उपयोग किया जा रहा है। बचाव कार्य को देख रहे NHIDCL के एमडी महमूद अहमद, SDRF के नोडल अधिकारी नरेश खेरवाल और उत्तराखंड सरकार के सचिव नीरज खेरवाल ने इस पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन पर जानकारी दी.
अधिकारियों के मुताबिक हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग के समय सुरंग में जो ऑगर मशीन के हिस्से फंस गए थे, उन्हे हटा दिया गया है. लेकिन मशीन का सिर अभी भी पाइपलाइन में फंसा है. इन खत्म करके ही पाइप को पीछे की तरफ धकेला जा सकता है.
जानकारी के अनुसार अबतक 3 मीटर पाइप का इस्तेमाल हो चुका है. अब हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग वाले रास्ते को ‘रैट माइनिंग’ के जरिए खोला जाएगा.
वर्टिकल ड्रिलिंग जारी
NHIDCL के एमडी, महमूद अहमद ने बताया कि वर्टिकल ड्रिलिंग जारी है और अब तक 36 मीटर की ड्रिलिंग पूरी हो चुकी है। कुल मीटर 86 की वर्टिकल ड्रिलिंग की जा रही है। इस प्रक्रिया के दौरान कुछ पानी और कठोर पत्थर मिले हैं। हालांकि, इन चुनौतियों के बावजूद, ड्रिलिंग का कार्य जारी है, और महमूद अहमद ने बताया कि चट्टान की परत को जानने के लिए 8 इंच की ड्रिलिंग की जा रही है।
एमडी महमूद अहमद ने बताया कि वे मैन्युअल ड्रिलिंग के जरिए अंदर फंसी गंदगी को हटाने पर काम कर रहे हैं। इसके बाद, मशीनों के इस्तेमाल से पाइप को अंदर धकेलेंगे. फिर इसके बाद आखिरी 10-12 मीटर में ड्रिफ्ट टनल का इस्तेमाल किया जाएगा।
वर्टिकल ड्रिलिंग मशीनों के बारे में बताते चलें कि यह 40-45 मीटर तक ड्रिल कर सकती हैं। सिल्क्यारा साइट पर दो मशीनें लाई गई हैं। अधिकारियों के अनुसार, वर्टिकल ड्रिलिंग का काम 30 नवंबर तक पूरा होना चाहिए।
क्या है रैट माइनर्स
रैट माइनर्स के बारे में जानकारी देते हुए, उन्होंने बताया कि वे छोटे ट्रॉली में छोटे सा मलबा लेकर आएंगे और इसे बाहर निकालेंगे। इस प्रकार, इन माइनर्स ने इस रेस्क्यू ऑपरेशन में अपना सहयोग प्रदान करने का उत्साह दिखाया है।
मजदूरों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए रोबोटिक्स विशेषज्ञ मिलिंद राज ने बताया कि मजदूरों की मानसिक भलाई के लिए विशेष प्राधिकृत्य दी जा रही है, और उन्हें जल्द ही इंटरनेट सेवा भी प्रदान की जाएगी।
यह रैट माइनिंग तकनीक, जिसे ‘चूहों की तरह खुदाई’ कहा जाता है, अवैध खनन क्षेत्रों में कोयले की छोटी-छोटी खदानों में उपयोग किया जाता है ताकि किसी को भनक न लगे।