Uttarakhand Forest Fire: शीतकालीन जंगलों में आग; प्रदेश में 43 जगह धधके जंगल, कुमाऊं में सबसे अधिक 33 घटनाएं

जलते जंगलों में उत्तराखंड में बढ़ते भयंकर खतरे का बयान, वन विभाग की चेतावनी का ध्यान नहीं। इस लेख में जानें जंगलों में आग की वारदातों की कहानी और इससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य।

उत्तराखंड में गढ़वाल से कुमाऊं तक 43 स्थानों पर जंगलों में आग लग चुकी है। इसमें सबसे अधिक 33 घटनाएं कुमाऊं की हैं, जबकि गढ़वाल में 8 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इनमें से दो घटनाएं वन्यजीव क्षेत्र में हुई हैं।

इस आग के मौसम में, जो तीन महीने चलता है, 21 घटनाएं रिकॉर्ड की गई हैं। उत्तरकाशी वन प्रभाग में इस समय की वनाग्नि घटनाओं ने पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। पिछले साल इस दौरान वहां 6 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जबकि इस बार यह आंकड़ा 21 हो गया है। इसमें 13.75 हेक्टेयर जंगल जल चुका है।

प्रति वर्ष 15 फरवरी से 15 जून तक वन आग का मौसम रहता है। इस समय क्षेत्रों में वनाग्नि की घटनाएं होती हैं। इन घटनाओं को रोकने के लिए वन विभाग कई कदम उठाता है, जैसे कि कंट्रोल बर्निंग, लेकिन बढ़ते तापमान के कारण वनाग्नि की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।

उत्तरकाशी वन प्रभाग की छह रेंजों में पिछले साल वनाग्नि की 6 घटनाएं थीं, जिसमें 2.25 हेक्टेयर जंगल जला था। इस बार यह आंकड़ा तीन गुना से अधिक है।

उत्तरकाशी वन प्रभाग से मिली जानकारी के अनुसार, अब तक 21 घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं, जिसमें 13.75 हेक्टेयर वन क्षेत्र में अमूल्य वन संपदा नुकसान पहुंच चुकी है। वन विभाग को इन घटनाओं को दर्ज करने में कंजूसी नहीं दिखानी चाहिए, जैसे कि इस फायर सीजन की शुरुआत में ही बड़े पैमाने पर आंध्र लगा था और वन विभाग के रिकॉर्ड में कोई घटना दर्ज नहीं थी।

बड़ेथी के पास धू-धूकर जला जंगल में आग लग गई है, जिससे अमूल्य वन संपदा को नुकसान होने का खतरा है। उत्तरकाशी वन प्रभाग में वनाग्नि की घटनाएं कम होने की आशा है, लेकिन मुखेम रेंज, बाड़ाहाट रेंज में यहां भी बढ़ती चिंता है।

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