भारत में न्यायेतर हत्याएँ, एक गंभीर मानव अधिकार विषय

संपादकीय: हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के पुलिस द्वारा अतीक अहमद और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामलों में चर्चा जोर पकड़ रही है। पहले अतीक अहमद के बेटे की पुलिस मुठभेड़ में हत्या हुई थी, फिर अशद अमहद का भी एनकाउंटर कर दिया गया था और शनिवार को पूर्व सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ अहमद की हत्या कर दी गई थी।

इस तरह की पुलिस की जानलेवा मुठभेड़ के मामलों में हमेशा विवाद होता रहा है। इससे पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं सामने आईं हैं, जो सामाजिक विरोध और संवेदनाओं को उजागर करती हैं। इसलिए, सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में न्यायेतर हत्याओं (एक्स्ट्रा-जुडिशल किलिंग) पर अपनी राय दी है। जीवन का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है, और इसे अपनी मृत्यु तक बचाना एक मौलिक अधिकार होता है। इसलिए, न्यायेतर हत्याएँ इस अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन होती हैं।

क्या है न्यायेतर हत्याएँ:

भारत में न्यायेतर हत्याओं की स्थिति चिंताजनक है। राज्य अधिकारियों द्वारा न्यायेतर हत्याएं करना, बिना किसी न्यायिक अथवा कानूनी कार्यवाही के व्यक्तिगत स्तर पर होती हैं और इसके लक्षणों में झूठे मुकदमों के दस्तावेजों का उपयोग करना, जल रहे घरों में लोगों को बिना किसी उद्देश्य के मारना, बेखौफी से लाठियां चलाना आदि शामिल होते हैं। इससे न केवल न्यायेतर हत्या की संख्या बढ़ती है, बल्कि इससे संविधान द्वारा दिए गए मूलाधिकारों का उल्लंघन भी होता है।

भारत में वर्ष 2016-17 और 2021-22 के बीच छह वर्षों में दर्ज पुलिस मुठभेड़ में हत्या के मामलों में 15% की गिरावट आई है, जबकि वर्ष 2021-22 से मार्च 2022 तक पिछले दो वर्षों में मामलों में 69.5% की वृद्धि हुई। यह कानून और संविधान के लिए चिंता का विषय है। भारत में पिछले छह वर्षों में पुलिस मुठभेड़ में हत्याओं के 813 मामले दर्ज किए गए हैं। अप्रैल 2016 से छह वर्षों में छत्तीसगढ़ में न्यायेतर हत्या के सबसे अधिक 259 मामले दर्ज किए गए, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 110 एवं असम में 79 मामले दर्ज किए गए। इसके साथ ही अब सवाल उठने लगा है कि ऐसी हत्याओं का लोग समर्थन क्यों करते हैं, जो न्यायेतर हत्याओं को बढ़ावा देती हैं और पुलिस को साहसी बनाती हैं। लोगों को कभी-कभी लगता है कि न्यायालयी व्यवस्था और कार्यप्रणाली समय पर न्याय नहीं देती। इसके कारण, वे न्यायेतर हत्याओं (एक्स्ट्रा-जुडिशल किलिंग – EJK) का समर्थन करते हैं जो ऐसी घटनाओं में इजाफे का प्रमुख कारण है।

कई राजनेताओं का मानना है कि पुलिस द्वारा मुठभेड़ की अधिक घटनाएँ राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के संदर्भ में उनकी उपलब्धि के रूप में काम करेगी। वहीं कई राजनेता इसे सरकार द्वारा अपने राजनैतिक लाभ के लिए की गई हत्या मानते हैं।

न्यायाधीशों द्वारा उद्धत हत्याओं के मामलों में पुलिस की दलील है कि हिंसा और यातना का प्रयोग अपराध को नियंत्रित करने और संभावित अपराधियों के बीच भय की भावना पैदा करने का एकमात्र तरीका है। ऐसी हत्याओं को अक्सर जनता और मीडिया द्वारा महिमामंडित किया जाता है, इसमें शामिल पुलिस अधिकारियों को नायकों के रूप में चित्रित किया जाता है जो समाज को भय मुक्त करने का कार्य कर रहे हैं, हालांकि पुलिस के पास इस तरह के कृत्य करने का कोई अधिकार नहीं है और इससे आरोपी के मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। मुठभेड़ पुलिस के लिए अपने क्षेत्र में कानून-व्यवस्था और अपनी छवी बनाए रखना का आसान तरीका है. और साथ ही जनता और मीडिया में हीरो बनने की लालसा है।

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