सूर्य तिलक: रामलला के मुखमंडल में सूर्य की किरणें; एक अनोखा प्रकाशित अनुभव

रामलला के सूर्य तिलक का ट्रायल सफल हुआ और कैसे इस प्रौद्योगिकी ने सोशल मीडिया पर धमाल मचा दिया है। इसके साथ ही, प्रोजेक्ट के पीछे कौन-कौन से तकनीकी गजबियां छुपी हैं और कैसे यह राम मंदिर के सपने को साकार करने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।

रामलला के सूर्य तिलक को लेकर पिछले आठ अप्रैल को किए गए सफल ट्रायल का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। 17 अप्रैल को रामजन्मोत्सव के दिन, ठीक 12 बजे, सूर्य की किरणें रामलला का सूर्य तिलक करेंगी।

एक मिनट 19 सेकेंड के वीडियो में रामंमदिर के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास रामलला की आरती उतार रहे हैं। इसी बीच सूर्य की किरणें रामलला के मुखमंडल को प्रकाशित करती नजर आ रही हैं। पार्श्व में बज रहा राम सियाराम, सियाराम जय जय राम का संगीत आनंदित कर रहा है। बताया गया है कि रामनवमी से पहले रविवार को भी वैज्ञानिक सूर्य तिलक का एक और ट्रायल करेंगे।

इस तरह तैयार हुआ पूरा मैकेनिज्म

सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) रुड़की के वैज्ञानिकों की एक टीम ने सूर्य तिलक मैकेनिज्म को तैयार किया है। इसके डिजाइन को तैयार करने में टीम को पूरे दो साल लग गए थे। 2021 में राम मंदिर के डिजाइन पर काम शुरू हुआ था। सीबीआरआई के वैज्ञानिकों की एक टीम ने सूर्य तिलक मैकेनिज्म को इस तरह से डिजाइन किया है कि हर साल राम नवमी के दिन दोपहर 12 बजे करीब चार मिनट तक सूर्य की किरणें भगवान राम की प्रतिमा के माथे पर पड़ेंगी। इस निर्माण कार्य में सीबीआरआई के साथ सूर्य के पथ को लेकर तकनीकी मदद बेंगलूरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) की भी ली गई है। बेंगलूरु की एक कंपनी ऑप्टिका ने लेंस और ब्रास ट्यूब का निर्माण किया है।

मंदिर के गर्भगृह तक लाई जाएंगी सूर्य की किरणें

प्रोजेक्ट सूर्य तिलक में एक गियर बॉक्स, रिफ्लेक्टिव मिरर और लेंस की व्यवस्था इस तरह की गई है कि मंदिर के शिखर के पास तीसरी मंजिल से सूर्य की किरणों को गर्भगृह तक लाया जाएगा। इसमें सूर्य के पथ बदलने के सिद्धांतों का उपयोग किया जाएगा। सीबीआरआई के वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप चौहान ने बताया कि, शत प्रतिशत सूर्य तिलक रामलला की मूर्ति के माथे पर अभिषेक करेगा।

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