एक अद्वितीय कदम के साथ, उत्तराखंड भारत में पहला राज्य बन गया है जो समान नागरिक संहिता को लागू कर रहा है, जिससे सामाजिक न्याय और समानता की मिसाल प्रस्तुत हो रही है। नई कानूनी व्यवस्था, जो विवाह, तलाक, विरासत, और लिव इन संबंधों से संबंधित है, जाति, धर्म, या परंपराओं के आधार पर होने वाले भेदभाव को खत्म करने का उद्देश्य रखती है।
उत्तराखंड ने आज ऐतिहासिक कदम उठाते हुए समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। विधानसभा में चर्चा के बाद, यह बिल पारित होने के साथ ही उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जो समान नागरिक संहिता को लागू करेगा। इसके साथ ही, आंदोलनकारियों के आरक्षण का बिल भी सफलतापूर्वक पारित हो गया है।
चर्चा के दौरान, विधायिकाओं ने बिल को लेकर व्यापक चर्चा की, और उसके पश्चात सीएम का संबोधन हुआ। सीएम धामी ने इस मौके पर सभी सदस्यों और जनता का कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा, “आज उत्तराखंड के लिए विशेष दिन है। मैं विधानसभा के सभी सदस्यों, जनता का आभार व्यक्त करता हूं। उनके समर्थन से ही हम आज यह कानून बना पा रहे हैं।”
इसके बाद, सीएम धामी ने यूसीसी बिल को ध्वनिमत से पास करने का संदेश दिया और उत्तराखंड को देश का पहला राज्य बनने का गर्व महसूस हो रहा है। अब यह बिल राज्यपाल और राष्ट्रपति के स्वीकृति के लिए जाएगा।
सीएम धामी ने आगे बढ़ते हुए कहा कि यह कानून समानता की भावना को मजबूत करेगा और किसी भी प्रथा या कुरीति से पीड़ित होने वाली माताओं और बहनों को आत्मबल प्रदान करेगा। इसे उन्होंने उन आंदोलनकारियों के समर्थन के रूप में देखा, जिन्होंने अपना योगदान देकर इस मुद्दे को महत्वपूर्ण बनाया।
उत्तराखंड में सामाजिक न्याय की दिशा में कदम बढ़ाते हुए, यह नया कानून जाति, धर्म और पंथ के रीति-रिवाजों से दूर खड़ा होता है। इसमें विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों के प्राविधान हैं, जिनमें जाति, धर्म और पंथ की परंपराओं का कोई प्रभाव नहीं होगा। धार्मिक मान्यताओं पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, और विवाह पंडित या मौलवी के बिना भी हो सकेगा।
समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों के प्राविधान में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हैं। इनमें शादी और तलाक का पंजीकरण अनिवार्य है, और इसके बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करने पर दूसरे व्यक्ति को तलाक लेने और गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा। इसके साथ ही, नाजायज बच्चों को भी जैविक संतान माना जाएगा और संपत्ति में बराबरी का अधिकार होगा।
लिव इन रिलेशनशिप के मामले में भी सुधार किया गया है, जिसमें पंजीकरण अनिवार्य है और इससे जन्मे बच्चों को जायज संतान माना जाएगा। इसमें लिव इन में रहने वालों के लिए संबंध विच्छेद का भी पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
समान नागरिक संहिता में गोद लेने के लिए कोई कानून नहीं है, और इससे समाज में समानता और न्याय की भावना को मजबूत किया गया है।
उत्तराखंड ने इस बदलाव के साथ ही देश को एक नए मील का पत्थर दिखाया है और इस प्रगतिशील कदम से यह सिद्ध हो रहा है कि वह समाज में समानता, न्याय, और सशक्तिकरण की दिशा में अग्रणी बना हुआ है।