अधिवक्ता को हथकड़ी लगाने का मामला पंहुचा मानवाधिकार आयोग, एडवोकेट एसोसिएशन ने पुलिस के विरुद्ध पारित की निंदा प्रस्ताव

मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट थाना क्षेत्र के पचगछिया पिरौछा निवासी अधिवक्ता हरे कृष्ण कुमार उर्फ माधव को हथकड़ी लगाये जाने का मामला अब मानवाधिकार आयोग पहुंचा , पुलिस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित।

मुजफ्फरपुर: मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट थाना क्षेत्र के पचगछिया पिरौछा निवासी अधिवक्ता हरे कृष्ण कुमार उर्फ माधव को हथकड़ी लगाए जाने का मामला अब मानवाधिकार आयोग पहुंच गया था। बता देना चाहूं कि वकील को गायघाट थाने की पुलिस ने थाने के हाजत में काफी बेरहमी से पीटा गया था और हाथ में हथकड़ी लगाकर उन्हें कोर्ट लाया गया था। घटना के बाद अधिवक्ताओं में आक्रोश देखा जा रहा था।

मामले की गंभीरता को देखकर एडवोकेट्स एसोसिएशन मुजफ्फरपुर में आज विशेष बैठक बुलाई गई। जिसमें गायघाट थाने की पुलिस के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव पारित किया गया। मामले के सम्बन्ध में मानवाधिकार अधिवक्ता एस. के. झा ने सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली के कई आदेशों तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 एवं 21 का हवाला देते हुए कहा था कि एक अधिवक्ता को हथकड़ी लगाकर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना, वो भी तब, जब भारतीय संविधान व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस पर रोक लगाई जा चुकी हो, यह पूर्णतः मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन था और संविधान का अवमानना थी।

बैठक के दौरान एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रामशरण सिंह, महासचिव वी. के. लाल, वरीय अधिवक्ता विजय कुमार शाही, नवल प्रसाद सिंह, रामबाबू सिंह, मुकेश ठाकुर, प्रमोद ठाकुर, ब्रजेश कुमार, रामसरोज सिंह, अशोक कुमार, भोलेनाथ वर्मा, राहुल कुमार, राजीव रंजन, संजय कुमार, नवीशांत, ललित कुमार सहित सैकड़ों की संख्या में अधिवक्तागण मौजूद थे। सभी ने एक सूर में अधिवक्ता को हथकड़ी लगाए जाने के मामले की कड़ी निंदा की।

अभी कुछ महीने पहले ही ऐसा ही मामला झारखण्ड के जमशेदपुर में आया था, जहां जमशेदपुर में अधिवक्ता चंदन चौबे को एक मामले में पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और कोर्ट में पेशी के दौरान पुलिस ने अधिवक्ता को हाथकड़ी पहनाई थी, जिसके खिलाफ लिखित शिकायत करने पर दोषी कंस्टेबल को सस्पेंड करना पड़ा था।

ऐसे मामले में क्या कहता है कानून?

किसी आरोपी के हाथों में हथकड़ी लगाने को सुप्रीम कोर्ट अपने कुछ फैसलों में असंवैधानिक करार दे चुका था। दरअसल, दंड प्रकिया संहिता 1973 यानी क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1973 की धारा-46 में बताया गया है कि किसी व्‍यक्ति को पुलिस कैसे गिरफ्तार करेगी। इसमें कहा गया है कि पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी के दौरान तब तक आरोपी को नहीं छुएगा, जब तक वह व्‍यक्ति बोलकर या शारीरिक प्रतिक्रिया के जरिए खुद को कस्‍टडी में ना सौंप दे। अगर कोई व्‍यक्ति बल प्रयोग कर गिरफ्तारी का प्रतिरोध कर रहा हो तो पुलिस को उसे गिरफ्तार करने के लिए हर तरह के जरूरी साधन का इस्‍तेमाल करने की छूट रहती थी।

महिलाओं को गिरफ्तार करने के क्‍या हैं नियम?

धारा-46 में महिला आरोपियों को गिरफ्तार करने के तरीके के बारे में भी बताया गया है। इसके मुताबिक, जब कोई महिला हिरासत में होने की जानकारी मौखिक तौर पर दिए जाने के बाद समर्पण ना कर दे, तब तक उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। वहीं, उसकी गिरफ्तारी के लिए एक महिला पुलिस अफसर का होना भी जरूरी है। इसे दूसरे तरीके से समझें तो महिला आरोपी पुरुष पुलिस अधिकारी के समक्ष समर्पण से तब तक इनकार कर सकती थी, जब तक पुलिस टीम में कम से कम एक महिला शामिल न हो। पुरुष अधिकारी महिला आरोपी के शरीर को छू भी नहीं सकते थे।

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