श्रीलंका की संसद ने मानवाधिकार और आजादी के संरक्षण में एक विवादास्पद कदम उठाते हुए ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक को मंजूरी दी है। विपक्ष का विरोध और सर्वोच्च न्यायालय के सुझावों के बावजूद, यह विधेयक अब कानून बन चुका है और विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए बदलावों के साथ ऑनलाइन सुरक्षा के क्षेत्र में एक नया मानक स्थापित करता है। इसमें शामिल दंड और जुर्माना प्रावधानों के साथ, यह विधेयक श्रीलंका की डिजिटल सुरक्षा को मजबूती प्रदान करने का एक कदम है।
श्रीलंका की संसद ने एक विवादास्पद ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक को मंजूरी दी है। इस विधेयक पर दो दिनों तक चर्चा चली थी, जिसके बाद बुधवार को इसके पक्ष में 108 वोट और विरोध में 62 वोट हुए। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुझावित संशोधनों को भी इस विधेयक में शामिल किया गया था। हालांकि, विपक्ष ने इसे घेरा था और इस पर आलोचना की थी। इस विधेयक में ऑनलाइन सामग्री की निगरानी का प्रावधान है, और आलोचकों का कहना है कि यह द्वीप राष्ट्र में अभिव्यक्ति की आजादी को कमजोर कर सकता है।
संसद से मंजूरी प्राप्त होने के बाद, यह विधेयक अब कानून का हिस्सा बन चुका है। इसमें ऑनलाइन सुरक्षा आयोग के गठन का भी प्रावधान है, जो अपराधों पर निर्णय लेने का अधिकार रखता है। यदि कोई व्यक्ति बिना तथ्यों के कोई बयान ऑनलाइन प्रसारित करता है और इसके लिए उसे दोषी पाया जाता है, तो उसे पांच साल से ज्यादा की सजा हो सकती है या पांच लाख रुपये (एसएलआर) से अधिक का जुर्माना भी हो सकता है। शीर्ष अदालत ने विधेयक के 57 प्रावधानों में से 31 में संशोधन की घोषणा की थी।
पहले ही दिन, विपक्ष ने स्पीकर महिंदा यापा अबेवर्दना से बहस को स्थगित करने की मांग की थी, जिसके बाद स्पीकर ने मतदान कराया कि विधेयक पर चर्चा को आगे बढ़ाया जाना चाहिए या नहीं। इसमें 225 सांसदों में से 83 ने बहस कराने के पक्ष में वोट किया, जबकि 50 ने इसके खिलाफ वोट किया।