उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका पर आए फैसले पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को कहा कि लोकायुक्त बिल प्रवर समिति के पास है, उस रिपोर्ट पर सरकार कार्रवाई करेगी।
उत्तराखंड: नैनीताल उच्च न्यायालय के लोकायुक्त पर आए फैसले के बाद सबकी निगाहें विधानसभा की प्रवर समिति पर लग गईं। अब त्रिवेंद्र सरकार में विधानसभा की प्रवर समिति के पास विचाराधीन लोकायुक्त बिल की खोजबीन शुरू हो गई है। समिति पिछली सरकार के कार्यकाल में रिपोर्ट स्पीकर को नहीं दे पाई थी। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने प्रवर समिति में विचाराधीन लोकायुक्त बिल के बारे में जानकारी लेने की बात कही है।
वहीं, उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका पर आए फैसले पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को कहा कि लोकायुक्त बिल प्रवर समिति के पास है, उस रिपोर्ट पर सरकार कार्रवाई करेगी।
हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को आठ सप्ताह में लोकायुक्त की नियुक्ति करने के आदेश दिए हैं। साथ ही लोकायुक्त कार्यालय पर होने वाले खर्च पर रोक लगाई है। वर्ष 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में सरकार विधानसभा में लोकायुक्त बिल लाई थी।
यह बिल प्रवर समिति को सौंप दिया गया था। विधानसभा भंग हो गई लेकिन प्रवर समिति ने अपनी रिपोर्ट स्पीकर को नहीं सौंपी। लोकायुक्त पर कोर्ट का फैसला आने के बाद प्रवर समिति का मसला भी गर्मा गया है। इस बात पर भी बहस शुरू हो गई कि नई विधानसभा के गठन के बाद प्रवर समिति और उसके पास विचाराधीन बिल का विधिक स्वरूप अब क्या होगा?
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, “लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर नया एक्ट बनना था। विधानसभा प्रवर समिति इस पर काम कर रही है। अभी तक इस पर कोई रिपोर्ट या निर्णय नहीं आया है। समिति के निर्णय पर सरकार कार्रवाई करेगी। हम तो शुरू से ही जीरो टॉलरेंस और भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड की बात कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, यह हमारी पहल है। भ्रष्टाचार की शिकायत को लेकर सभी कार्यालयों में 1064 टोल फ्री नंबर के बोर्ड लगाए गए हैं। शिकायतों पर कार्रवाई की जा रही है।”
अध्यक्ष विधानसभा ऋतु खंडूड़ी भूषण ने कहा, “विधानसभा प्रवर समिति ने लोकायुक्त पर कितना काम किया है या अपनी क्या रिपोर्ट दी है। इस बारे में जल्द ही देहरादून पहुंच कर अधिकारियों से जानकारी लेंगे।”
जगदीश चंद, पूर्व विस सचिव और विधायी मामलों के जानकार, ने बताया, “नियम के अनुसार, नई विधानसभा के गठन के साथ पूर्व में बनी प्रवर समिति व्यवस्था (लैप्स) हो जाती है। सदन पटल पर रखे गए किसी भी प्रस्ताव पर स्पीकर निर्णय लेकर मामले को प्रवर समिति को सौंपती है। समिति अपनी रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष को सौंपती है। जिसके बाद समिति की रिपोर्ट को सदन की कार्यवाही के लिए एजेंडा में शामिल किया जाता है और सदन में चर्चा की जाती है।”