भारतीय विदेशमंत्री एस जयशंकर ने जापान दौरे के दौरान संयुक्त राष्ट्र में सुधार की महत्वपूर्ण बातें कहीं। उनका कहना है कि संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ सुरक्षा परिषद में भी बदलाव होना चाहिए।
भारतीय विदेशमंत्री जापान दौरे पर हैं और उन्होंने शुक्रवार को निक्केई फोरम में अपनी बात रखी। उन्होंने व्यक्त किया कि अगर दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश और संसाधनों के संपन्न देश संयुक्त राष्ट्र से बाहर रखे जाएं, तो यह सुरक्षा परिषद के लिए सकारात्मक नहीं होगा।
भारत-जापान के बीच रणनीतिक साझेदारी पर उनका जोर था कि इस परिषद में भारत और जापान को उनके हक के मुताबिक स्थान मिलना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश और संसाधन समृद्धि में योगदान करने वाले देशों को संयुक्त राष्ट्र से बाहर रखना संगठन के लिए अच्छा नहीं है। हम चाहते हैं कि इस पर जल्दी से ध्यान दिया जाए।’
संयुक्त राष्ट्र में बदलाव की मांग
विदेशमंत्री ने बताया कि जब संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई थी, तब वहां करीब 50 सदस्य देश थे, लेकिन आज ये सदस्यता में 200 देश हैं। उनका मानना है कि इससे स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता है।
उन्होंने यह भी जताया कि सदस्यों की वृद्धि के साथ संगठन की नेतृत्व क्षमता में असमानता हो सकती है और इस पर सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘अगर किसी संगठन में सदस्यों की संख्या बढ़ जाती है, तो नेतृत्व और निर्णय लेने की क्षमता समान नहीं रह सकती है।’
सुरक्षा परिषद में बदलाव की आवश्यकता
विदेशमंत्री ने सुरक्षा परिषद के बारे में भी बात की और कहा कि पहले भी यहां बदलाव हुआ है। उनका दावा है कि सुरक्षा परिषद में पहले भी विस्तार हुआ है ताकि अधिक से अधिक अस्थायी सदस्यों को शामिल किया जा सके। उन्होंने कहा, ‘हम जानते हैं कि बदलाव आएगा, लेकिन महत्त्वपूर्ण है कि यह कब होगा, इसमें कितना समय लगेगा और यह कैसे होगा।’
विदेशमंत्री ने इस संदर्भ में कहा कि बदलाव का आगमन होना तय है और उसके कुछ हिस्से स्पष्ट हो रहे हैं। हालांकि, कुछ विरोधी तत्वों ने इसमें देरी करने के तरीके अपनाए हैं। विदेशमंत्री ने कहा, ‘लेकिन अब हम एक स्थिति में हैं जहां विभिन्न देश और समूह इस पर विचार विमर्श कर रहे हैं। इस समय एक अंतरसरकारी वार्ता (आईजीएन) प्रक्रिया भी चल रही है, जिसमें कुवैत और ऑस्ट्रिया का संचालन हो रहा है और विभिन्न मॉडलों के साथ बदलाव की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है।’
विकासशील देशों और वैश्विक दक्षिण द्वारा प्रस्तुत L-69 समूह ने भी अपना मॉडल साझा किया है। इससे साफ होता है कि विश्व समुदाय में सुधार के लिए एक सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण और साझेदारी की आवश्यकता है।