आसियान में भारत एक अहम भूमिका निभा रहा है। इसके बाद ईस्ट पॉलिसी में भी भारत की सोच का दूसरे देशों ने समर्थन किया। एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर भी भारत ने तेजी से काम करना शुरू किया है। इन सबके मद्देनजर चीन परेशान हो उठता है।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नई दिल्ली में होने वाले ‘जी20’ शिखर सम्मेलन में नहीं आ रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी सम्मेलन में भाग लेने को लेकर अपनी असमर्थता जताई है। हालांकि इन दोनों देशों के प्रतिनिधि, सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। रूस का प्रतिनिधित्व, विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव करेंगे, तो वहीं चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग भारत आएंगे। विदेशी नीति के जानकारों का कहना है, हाल ही संपन्न हुए ब्रिक्स सम्मेलन में पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी। हालांकि उस मुलाकात को लेकर दोनों देशों के मीडिया में अलग-अलग बयान जारी हुए थे। मुलाकात के तुरंत बाद ही चीन ने एक विवादित नक्शा जारी कर दिया। उसके बाद कहा गया कि राष्ट्रपति जिनपिंग भारत नहीं आ रहे हैं। यहां सवाल उठता है कि क्या शी जिनपिंग, अपनी अनुपस्थिति से ‘जी20’ को कमजोर करना चाहते हैं।
पहले भी सहमति नहीं बन सकी थी
इससे पहले अभी तक ‘जी20’ की बैठकों में किसी एक सामान्य प्रोग्राम पर सहमति नहीं बन सकी है। इसका कारण भी चीन और रूस को बताया जा रहा है। दूसरी तरफ पीएम मोदी हैं, जिन्होंने ‘जी20’ के आयोजन से महज 48 घंटे पहले दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान)-भारत शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता की। इतना ही नहीं, मोदी ने 18वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) में शिरकत करने का भी प्लान तैयार कर लिया। आठ सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन दिल्ली पहुंच रहे हैं। उनके साथ पीएम मोदी द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। उसके बाद बाइडन जी20 की बैठक में शामिल होंगे।
जानकारों के मुताबिक, पीएम मोदी चीन की हरकत को भांप चुके हैं। अगर चीन के राष्ट्रपति जी20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दिल्ली नहीं आ रहे हैं तो इसका एक गहरा मतलब है। ये अलग बात है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर कहते हैं, यह पहली बार नहीं है जब ‘जी20’ की बैठक में कोई राष्ट्रध्यक्ष न पहुंचा हो। इससे पहले भी ऐसे कई अवसर आए हैं, जब किसी देश के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ने किसी वजह से सम्मेलन में भाग नहीं लिया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मायने यह रखता है कि उस देश का पक्ष और स्थिति क्या है। वह इसी बात से साफ हो जाता है कि वह देश अपने किस प्रतिनिधि को ‘जी20’ शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भेजता है। सभी देश, इस सम्मेलन को काफी गंभीरता से ले रहे हैं।
‘जी20’ की बैठकों को लेकर सकारात्मक नहीं रहा चीन
जानकारों के अनुसार, कुछ वर्षों से जी20 की बैठकों के प्रति चीन का रूख सकारात्मक नहीं रहा है। गत वर्ष इंडोनेशिया के बाली में हुए जी20 शिखर सम्मेलन में सदस्य राष्ट्रों द्वारा किसी एक मुद्दे पर सहमति वाला बयान जारी करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। आम सहमति वाले कई मुद्दों पर यूक्रेन युद्ध की छाया पड़ी रही। बाकी चीन के रूख ने बैठक के एजेंडे को ही मुश्किल में डाल दिया था। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती दूरी का असर, शिखर सम्मेलन के एजेंडे पर देखने को मिला।
चीन का मकसद है कि वह कारोबार और डिजिटल के मामले में अमेरिका को पछाड़ दे। दोनों महाशक्तियों के बीच चल रही खींचतान में ही भारत ने खुद के लिए पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का लक्ष्य तय किया है। भारत और अमेरिका का ताइवान के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर, चीन को रास नहीं आ रहा। अमेरिका ने जब चीन के एक मानवरहित गुब्बारे को गिराया तो दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया। जी20 सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति की उपस्थिति से भारत, पश्चिमी देशों के साथ विकास के कई मुद्दों पर चर्चा कर सकता है। शी जिनपिंग की अनुपस्थिति से अब पश्चिमी राष्ट्रों के बीच भारत की भूमिका बढ़ जाएगी।
पीएम मोदी ने ‘आसियान’ सम्मेलन में क्या कहा
जी20 सम्मेलन से दो दिन पहले इंडोनेशिया में आयोजित हुए दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान)-भारत शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता करते हुए पीएम मोदी ने कहा, हमारी साझेदारी चौथे दशक में पहुंच गई है। गत वर्ष भारत-आसियान मैत्री दिवस मनाया गया था। उसमें व्यापक रणनीतिक साझेदारी का रास्ता खुला। आसियान के साथ जुड़ाव, भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
मोदी ने कहा, 20वां आसियान-भारत शिखर सम्मेलन एक ‘अत्यंत मूल्यवान’ साझेदारी है। इसके साथ ही पीएम मोदी 18वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) में भी हिस्सा ले रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने जकार्ता में कहा, हमारा इतिहास और भूगोल भारत एवं आसियान को एकजुट करता है। आसियान बहुत मायने रखता है। यहां हर किसी की आवाज सुनी जाती है। यह एक विकास का केंद्र है, क्योंकि वैश्विक विकास में आसियान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आसियान के नजरिए का समर्थन करता है।
इसलिए चीन जी20 को कमजोर करना चाहता है
जानकारों के मुताबिक, आसियान में भारत एक अहम भूमिका निभा रहा है। इसके बाद ईस्ट पॉलिसी में भी भारत की सोच का दूसरे देशों ने समर्थन किया। एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर भी भारत ने तेजी से काम करना शुरू किया है। इन सबके मद्देनजर चीन परेशान हो उठता है। इस बात को चीन अच्छे से समझता है कि पूर्व के देशों के साथ, भारत के संबंध गहरे बनते हैं तो उसका असर ड्रैगन पर पड़ेगा। चीन के साथ दूसरे देशों की आर्थिक गतिविधियां भी प्रभावित होंगी। यही वजह है कि चीन जी20 को कमजोर करना चाहता है।
उत्तर पूर्वी क्षेत्र के राज्यों के लिए फायदेमंद
एक्ट ईस्ट पॉलिसी, का उद्देश्य द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय स्तरों पर निरंतर जुड़ाव के माध्यम से आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ भारत के रणनीतिक संबंध विकसित करना है। इसके माध्यम से उत्तर पूर्वी क्षेत्र के राज्यों को बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान की जा सकती है। अरूणाचल प्रदेश को भी इससे लाभ हो सकता है। भारत के उत्तर पूर्व को, ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ (एईपी) में प्राथमिकता दी गई है। एईपी, अरुणाचल प्रदेश राज्य और आसियान क्षेत्र सहित उत्तर पूर्व भारत के बीच एक इंटरफेस प्रदान करता है। द्विपक्षीय और क्षेत्रीय स्तरों पर विभिन्न योजनाओं में व्यापार, संस्कृति, लोगों से लोगों के बीच संपर्क और भौतिक बुनियादी ढांचे (सड़क, हवाई अड्डे, दूरसंचार, बिजली, आदि) के माध्यम से आसियान क्षेत्र के साथ पूर्वोत्तर की कनेक्टिविटी को विकसित और मजबूत करने के निरंतर प्रयास शामिल हैं।
ऐसी ही कुछ प्रमुख परियोजनाओं में कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट, भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना, री-टिडिम रोड परियोजना, बॉर्डर हाट आदि शामिल हैं। भारत आसियान, एआरएफ, ईएएस, बिम्सटेक, एसीडी, एमसीजी और आईओआरए जैसे संबंधित क्षेत्रीय और बहुपक्षीय संगठनों के साथ घनिष्ठ साझेदारी बनाने के लिए प्रयास तेज कर रहा है। सभ्यता के मोर्चे पर, लोगों के बीच नए संपर्क और कनेक्टिविटी विकसित करने के लिए बौद्ध और हिंदू संबंधों को सक्रिय किया जा सकता है। कनेक्टिविटी पर, विशेष रूप से आसियान को हमारे उत्तर पूर्व के साथ जोड़ने के लिए एक सुसंगत रणनीति विकसित करने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।