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भारत में हर साल पेश होने वाले बजट को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं होती रहती हैं. वैसे तो देश की आर्थिक सेहत का लेखा-जोखा, वित्त से संबंधित सुधार इसके जरिए लाए जाते हैं. लेकिन इसमें लिए गए फैसलों और ऐलानों के पीछे का आधार राजनीति होती है. ये प्रचलन साल दर साल बढ़ता जा रहा है.
राजनीतिक मजबूरी और लुभाने के दायरे में रहकर हर वित्त मंत्री की कोशिश आर्थिक विकास और सामाजिक सामनता के बीच एक संतुलन साधना होता है जिसमें उपलब्ध संसाधनों का आवंटन एक बड़ी चुनौती हमेशा रही है.
बात करें भारत के पहले बजट की तो देश के बंटवारे के बाद उपजी तमाम समस्याएं इसमें साफ दिख रही थीं. भारत का पहला बजट नवंबर 1947 को डॉ. आरके शनमुखम ने पेश किया था. ये दौर था जब सेना को शरणार्थियों की मदद के साथ-साथ पाकिस्तान की ओर से किए जा रहे हमले का भी सामना करना पड़ रहा था. नतीजा ये रहा कि देश के पहले बजट में से 47 फीसदी रक्षा क्षेत्र में खर्च करना पड़ा. कुल खर्च की तुलना में वित्तीय घाटा 21 फीसदी था.
1947 से लेकर अब तक 89 बार बजट पेश किया गया चुका है. अब तक 26 वित्तमंत्री इसका जिम्मा उठा चुके हैं. इनमें से 10 बार मोरारजी देसाई ने बजट पेश किया है जो कि सभी वित्त मंत्रियों से ज्यादा है. इसके बाद पी. चिदंबरम का नाम आता है जिन्होंने 9 बार, प्रणब मुखर्जी ने 7 बार पेश किया है. वर्तमान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण 5वीं बार बजट पेश करेंगी. खास बात ये है कि अब तक चार वित्त मंत्रियों को प्रधानमंत्री बनने का भी मौका मिल चुका है.
बजट के बारे में सबसे हैरान करने वाला आंकड़ा भी है. बीते 14 सालों में 37 मंत्रालय और विभाग ऐसे भी हैं जिनको एक प्रतिशत से भी कम हिस्सा बजट में मिला है जिसमें सामाजित न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा विभाग शामिल हैं. वहीं बीते एक दशक में बजट का 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा वित्त और रक्षा मंत्रालय को गया है. बजट 2022 में वित्त मंत्रालय को 39 फीसदी और रक्षा मंत्रालय को 13 फीसदी हिस्सा मिला.
बजट में महिलाओं की हिस्सेदारी की बात करें तो साल 2005-06 में जेंडर आधारित आवंटन बजट में शुरू हुआ. 5 फीसदी फंड महिलाओं पर आधारित योजनाओं में शुरू की गईं. बीते साल यह खर्च 4 फीसदी तक था. ये योजनाएं दो तरह की हैं, जिनमें पहली पूरी तरह से महिलाओं पर केंद्रित थीं और दूसरी महिलाओं के विकास के लिए जरूरी चीजों से जुड़ी हैं. साल 2022 के बजट में दूसरी तरह की योजनाओं पर जेंडर आधारित बजट के हिस्से में 84 फीसदी खर्च करने का ऐलान था.
वित्तीय साल 2010 से ही सरकार की कुल जीडीपी में 7 फीसदी टैक्स का रहा है. तब से ही गैर कर राजस्व की हिस्सेदारी भी 2 प्रतिशत से 1 प्रतिशत पर आ गई है. साल 2023 के लिए सरकार ने टैक्सों के जरिए 9.6 फीसदी का राजस्व प्राप्ति का लक्ष्य रखा था.
वार्षिक वित्तीय स्टेटमेंट हर साल देश के बढ़ते आर्थिक विकास को बताता है. बीते 10 सालों में 6 बार बजट ने नॉमिनल जीडीपी का अधिक अनुमान लगाया है. जबकि 4 बार बजट के जरिए इसको कम आंका गया है. बता दें कि नॉमिनल जीडीपी उसे कहते हैं जब यह चालू कीमतों (वर्तमान साल की कीमत) में सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को मापता है. जबकि जीडीपी किसी आधार वर्ष की कीमतों पर सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को बताता है.
साल 2020-21 में जब कोरोना महामारी आई थी तो सरकार ने उस साल के बजट में नॉमिनल जीडीपी को 224.9 ट्रिलियन रुपये आंका था लेकिन वास्तविक आंकड़ा 198 ट्रिलियन रुपये आया था. लॉकडाउन की वजह से 12 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी.
बजट के दिन शेयर बाजारों पर सबकी नजर होती है. बात करें बीते 20 सालों के बजट की तो इसको पेश करने के बाद 11 बार सेंसेक्स ने गोता लगाया है जबकि 9 बार इसमें तेजी देखी गई. साल 2021 के बजट में सबसे ज्यादा 5 फीसदी तक ऊपर चला गया था.
देश की सामाजिक, आर्थिक और काफी हद तक राजनीतिक दिशा तय करने वाला बजट शब्द फ्रेंच भाषा लिया गया है इसका मतलब चमड़े का ब्रीफकेस होता है. मोदी सरकार आने से पहले लोगों की नजरें रेल बजट, चीजों की कीमतें और टैक्स पर की गईं घोषणाओं पर टिकी होती थीं.
लेकिन वर्तमान सरकार ने इसमें कई बदलाव कर दिए हैं. अब रेल बजट अलग से पेश नहीं किया जाता है. चीजों की कीमतें अब जीएसटी परिषद तय करती है. सिर्फ टैक्स में छूट को लेकर ही आम जनता में उत्सुकता रहती है. बीते साल गूगल पर महाराष्ट्र, कर्नाटक और दिल्ली में सबसे ज्यादा ‘बजट’ सर्च किया गया था.
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