रतन टाटा के निधन ने न केवल देश को शोक में डुबो दिया, बल्कि पारसी समाज की प्राचीन परंपराओं में भी बदलाव की एक अनदेखी दिशा दिखाई। उनके अंतिम संस्कार में पारंपरिक ‘टावर ऑफ साइलेंस’ का उपयोग नहीं हुआ, बल्कि विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार किया गया। जानिए, क्यों पारसी समुदाय अपनी सदियों पुरानी परंपराओं को बदलने पर मजबूर हो रहा है और कैसे रतन टाटा का अंतिम संस्कार एक नई परंपरा का प्रतीक बना।
रतन टाटा: एक युग का अंत, पारसी परंपराओं में बदलाव की झलक
टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार की देर रात मुंबई में निधन हो गया। देशभर में शोक की लहर है। उन्होंने 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन के साथ एक युग का अंत हुआ, लेकिन उनके अंतिम संस्कार ने पारंपरिक पारसी रीति-रिवाजों में बदलाव की तरफ भी इशारा किया। रतन टाटा का अंतिम संस्कार पारसियों के पारंपरिक तरीके से न होकर विद्युत शवदाह गृह में किया गया, जो पारसी परंपराओं में एक नयी दिशा दिखाता है।
पारसी परंपराओं का बदलता स्वरूप
पारसी धर्म में शवों को न तो जलाया जाता है, न ही दफनाया जाता है। उनके रीति-रिवाज के अनुसार, शव को “टावर ऑफ साइलेंस” (दखमा) में रखा जाता है, जहाँ गिद्ध और अन्य पक्षी उसे खा जाते हैं। पारसी मान्यता के अनुसार, अग्नि, जल और धरती को पवित्र माना जाता है और उन्हें शव से अपवित्र नहीं करना चाहिए। यही वजह है कि शवों को पारसियों के लिए खास तौर पर चुनी गई जगहों पर छोड़ा जाता है।
क्यों बदल रही है परंपरा?
समय के साथ गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट आई है। इससे पारसी समुदाय के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गईं। जब गिद्ध शवों को नहीं खा पाते, तो शव सड़ने लगते हैं, जिससे आसपास की जगहों में बदबू और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यही कारण है कि पारसी समुदाय के बहुत से लोग अब विद्युत शवदाह गृह की ओर रुख कर रहे हैं। रतन टाटा का अंतिम संस्कार भी इसी बदलती परंपरा का उदाहरण है।
कोरोना काल में उठा था विवाद
कोरोना महामारी के दौरान पारसी समुदाय में भी अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ था। पारंपरिक तरीके से शवों का अंतिम संस्कार करने पर संक्रमण फैलने का खतरा था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोकने के लिए कदम उठाए थे।
एक और प्रेरणादायक जीवन का अंत
रतन टाटा के निधन से देश ने एक प्रेरणादायक उद्योगपति खो दिया है, जिनका योगदान अतुलनीय है। उनके जीवन ने न सिर्फ उद्योग जगत बल्कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी गहरी छाप छोड़ी है। टाटा समूह के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “रतन टाटा का योगदान अतुल्य है और उनकी विरासत सदियों तक जीवित रहेगी।” महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने घोषणा की कि उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।