बीजिंग: एक तरफ जहां दुनिया के कई देश युद्ध में या तो अपने आप को झोंक चुका है, या फिर युद्ध की कगार पर खड़ा है. ऐसे में दो दुश्मन देश सऊदी अरब और ईरान के बीच दोस्ती का संकेत मिलना एक अच्छा संकेत है. सऊदी अरब में 2016 में एक प्रमुख शिया धर्मगुरू की हत्या के बाद बिगड़े हालत के चलते दोनों देशों में राजनायिक संबंध समाप्त हो गया था. जिसके 7 साल बाद एक बार फिर दोनों देशों में संबंध सुधरते दिख रहा है.
हाल ही में सऊदी अरब और ईरान के अधिकारियों के बीच दोपक्षिय बैठक हुआ था, जिससे अच्छे संकेत देखे गए. 2016 से खत्म दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध को फिर से स्थापित किया जा रहा है. यह समझौता बीजिंग में संपन्न हुआ, जिसमे चीन ने अहम भूमिका निभाया है. यह समझौता महत्वपूर्ण इसलिए भी माना जा रहा कि यमन में चल रहे लंबे समय से राजनयिक युद्ध को समाप्त करने में अहम भूनिका निभा सकता है जिसमे सऊदी और ईरान बुरी तरह उलझा हुआ है.
समझौते में क्या है खास:
दोनों देश रियाद और तेहरान में 2016 से बंद अपने-अपने दूतावास फिर से खोलने का विचार कर रहे हैं. साथ ही दोनों देश ने एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने पर सहमति पर हस्ताक्षर किए हैं. दोनों देशों के बीच 2016 से बंद व्यापार, रक्षा समझौते और व्यापार में निवेश को फिर से सक्रिय किया जाएगा.
भारत पर प्रभाव
सऊदी अरब और ईरान दोनों ही दुनियां के प्रमुख तेल उत्पादक देश है. ऐसे में अगर दोनों देश में मित्रता बरकरार होती है तो तेल की कीमत में स्थिर हो सकता है. जिसका बहुत बड़ा प्रभाव भारत पर पड़ेगा. और भारत में तेल की निरंतर आपूर्ति हो सकेगा. इसके साथ ही सऊदी अरब और ईरान के बीच अच्छे संबंध स्थापित होता है तो भारत से व्यापारिक संबंध और निवेश के नए रास्ते खुल सकते हैं. क्योकि दोनो भारत के करीबी देश माना जाता है. सऊदी और ईरान दोनों भारत के परोसी देश है और भारत के साथ दोनों देशों का सौहार्दपूर्ण संबंध रहा है. ऐसे में दोनों देशों के अच्छे संबेध से क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों का मदद मिल सकता है.
हलाँकि चीन की मध्यस्थता और दोनों देशों के बीच हस्तक्षेप भारत के लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है. चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए चिंता का विषय बन सकता है. भारत इन दोनों देशों के बीत संवाद और सहयोग को बढ़वा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत को कूटनीतिक तरीकों से निपटना होगा. और सामरिक हितों को सुरक्षित करने की दिशा में काम करना होगा.