तमिलनडू: कोराना काल ने देश को प्रवासी मजदूरों और उनकी समस्याओं से अवगत कराने का काम किया. पलायन का सबसे ज्यादा दंष झेल रहे प्रदेशों में बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्य शामिल है. समय समय पर प्रवासी मजदूरों की समस्याएं और उनके साथ हो रहे दूर्व्यवहार सामने आते रहे हैं. तमिलनाडु के औद्योगिक और विनिर्माण क्षेत्र हिंदी भाषी श्रमिकों पर कथित हमलों के बाद पलायन एक बार फिर चर्चा में है. राज्य के उद्योग में लगभग दस लाख प्रवासी श्रमिक काम कर रहे हैं.
तमिलनडू में हुए बिहारी मजदूरों पर कठित हमले ने एक बार फिर प्रवासी मजदूरों और उनका पलायन चर्चा में है. हलाकि हमले की जांच करने गए बिहार से अधिकारियों के डेलिगेशन ने अपने रिपोर्ट में मजदूरों पर हमले से इंकार कर दिया है, और इसे अपवाह बताया है. 6 मार्च को एक फर्जी वीडियो वायरल हुआ था जिसमें दावा किया गया था कि तमिलनाडू में काम कर रहे प्रवासी बिहारी मजदूरों पर हमला किया गया था. जिसके कारण प्रदेश के DMK सरकार को कटघरे में खड़ा किया गया था. तमिलनाडू से पटना वापस लौटे अधिकारियों की टीम ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों पर कोई हमला नहीं हुआ.
ज्यादातर प्रवासी मजदूर देश के हिंदी क्षेत्र से आते हैं, जिन्हें गैर हिंदी राज्यों में भाषा, रहन-सहन औरवहां के संस्कृति के कारण विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है. तमिलनाडू हो या महाराष्ट्र या फिर अन्य गैर हिंदी राज्य उन्हें स्वीकार नहीं किया जाता है. और उन्हें प्रवासी के रूप में देखा जाता रहा है.
राजनीतिक और अन्य अधिकार:रोजगार के लिए गए प्रवासी मजदूरों को उन राज्यों में मतदान के अधिकार से वंचित होना पड़ता है. साथ ही उन राज्यों के सरकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हें नहीं मिल पाता है. जिसके कारण भी प्रवासी मजदूरों को विभिन्न समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है. पते का प्रमाण, मतदाता पहचान पत्र एवं आधार कार्ड की स्थानीय स्तर पर अनुपलब्धता उनको कई प्रकार की सुविधाओं से वंचित करती है।
प्रवासी श्रमिक कल्याण के लिये कानून: भारत में प्रवासी श्रमिक कल्याण के लिये अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979 बनाया गया था. जिसके तहत मजदूरों को एक राज्य से काम के लिए दूसरे राज्यों में ले जाने के लिए ठेकेदारों को लाइसेंस बनाने का प्रावधान तय किया गया. यह उन व्यवसायों के पंजीकरण करता है जो प्रवासी श्रमिकों को काम पर रखते हैं। हालाँकि अधिनियम को दैनिक जीवन में पूरी तरह से उपयोग में नहीं लाया गया है. इस कानून को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका. इस अधिनियम को संचालित करने में सरकारें नाकाम रही है. अधिनियम 1979 को राज्यों में पूरी तरह से लागू नही किया जा सका है. जिसको प्रवासी श्रमिकों पर हमले का प्रमुख कारण माना जा सकता है.
केंद्र सरकार की पहल: नीति आयोग ने 2021 में राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति का मसौदा तैयार किया है. केंद्र सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के राहत और पुनर्वास” योजना के तहत 7 उप-योजनाओं को जारी रखने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है। केंद्र सरकार ने वन नेशन वन राशन कार्ड, किफायती किराये के आवास, पीएम गरीब कल्याण योजना योजना और ई-श्रम पोर्टल की शुरूआत कर प्रवासियों के अच्छे भविष्य की नींव रखने का काम किया है. लेकिन इन योजनों का लाभ श्रमिकों तक तब तक नहीं पहुंच सकता जब तक इसका सही से लागू ना किया जाता. केंद्र सरकार को राज्यों के साथ मिलकर काम करने की दरकार है. साथ ही केंद्र द्वारा राज्यों को सहयोग दिया जाना चाहिए. शायद तब ही इसका लाभ प्रवासी श्रमिकों तक पहुंच पाएगा.